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आस्था एवं भक्ति का प्रतीक कामाख्या मंदिर


कामाख्या मंदिर की अधिष्ठात्री देवी है कामाख्या देवी जिन्हें आदिशक्ति देवी दुर्गा का परम शक्तिशाली स्वरूप माना गया है। माँ की अलौकिक शक्तियों एवं चमत्कारों ने ही कामाख्या देवी मंदिर को विश्व में प्रसिद्ध किया है। ऐसी मान्यता है कि देवी कामाख्या अपनी शरण में आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करती है। 

 

कहाँ है कामाख्या मंदिर?

भारत के अद्भुत और चमत्कारिक मंदिरों में से एक है कामाख्या मंदिर जो असम राज्य की राजाधानी दिसपुर के निकट गुवाहाटी से लगभग 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। 

 

आदिशक्ति के समस्त शक्तिपीठों में से एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ कामाख्या मंदिर है और इस मंदिर को तंत्र विद्या और सिद्धि का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। इसी वजह से कामाख्या मंदिर को शक्तिपीठ को महापीठ कहा जाता है। 

 

कामाख्या मंदिर में किसका पूजन होता है?

कामाख्या मंदिर में देवी सती की योनि की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि कामाख्या मंदिर में देवी सती का योनि भाग गिरा था इसलिए यहाँ देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र नहीं है। कामाख्या मंदिर में एक कुंड बना है जो हमेशा फूलों से ढ़का रहता है।    

 

कामाख्या मंदिर का इतिहास

  • मध्यकाल के दौरान कामाख्या देवी मंदिर का निर्माण किया गया था। कोच राजा बिस्व सिंघ ने मंदिर का पुनर्निर्माण साल 1553-54 में कराया था। इसके पश्चात गौड़ के एक मुस्लिम आक्रमणकारी ने मंदिर को ध्वस्त कर दिया। 
  • राजा बिस्व सिंघ के उत्तराधिकारी महान कोच राजा नरनारायण ने अपने भाई चिलाराई के साथ मिलकर इस मंदिर का निरीक्षण किया और कामाख्या मंदिर को पूरी तरह खंडहर पाया। इस मंदिर का जीर्णोद्धार नारायण ने 1565 में कराया।
  • 17वीं शताब्दी के आरंभ में अहोम ने कामाख्या मंदिर का निर्माण अनेक प्रकार के पत्थरों से कराया था। इसका प्रमाण मंदिर के शिलालेख और तांबे की प्लेट से प्राप्त होता है। 
  • साल 1897 ई. में भूकंप की वजह से कामाख्या मंदिर को क्षति पहुंची थी। मंदिर को विभिन्न राजाओं का शाही संरक्षण प्राप्त हुआ।



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